चिट्ठियाँ
बहुत समय बीत गया , चिट्ठी नहीं आई सखि ,
बरसों पहले तो हर , हफ्ते चिट्ठी आती थी सखि ,
प्यार भरी चिट्ठी पाकर , हम खुश होते थे सखि ,
मगर इस निगोड़े मोबाइल ने , हमारी ये खुशी है चुराई ||
आज तो ना कोई , डाक बाबू आता है सखि ,
इंतजार तो बढ़ता ही जाता , ना आती कोई चिट्ठी ,
प्यार में डूबे शब्द , लिखे उनकी कलम से नहीं मिलते ,
कोई तो कहो समय से , वापस लौटा दे हमारी चिट्ठी ||
कौन लौटाएगा उस समय को , जब मिलेंगी चिट्ठियाँ ?
मन डूब जाएगा पढ़कर , वो प्यारी पतियाँ ,
क्या कोई कर पाएगा मेरा काम , लौटाएगा बीता समय ?
मेरे जीवन की वो चिट्ठियाँ ,प्यार ,मनुहार भरी चिट्ठियाँ सखि ||