दिल - ओ - दिमाग
समझ हमारे दिल और दिमाग की , आपस में भिड़ गईं दोस्तों ,
दिल ने कहा ---- क्यों ढूँढते हो तर्क , हर बात में दिमाग तुम ,
किसी बात को तो भावनाओं से , जोड़कर देखो दिमाग तुम ,
किसी बात की गहराई में , डूबकर देखो दिमाग तुम ,
हर बात में तर्कों का , गणित बिठा लेते हो दिमाग तुम ,
ना कोई प्यार बसा है , ना कोई मुस्कान खिली है होठों पर ,
कैसे रूखे से व्यवहार को , अपनाए हो दिमाग तुम ??
अब दिमाग ने कहा ---- तुम तो दिल ,हर बात में भावों में डूब जाते हो ,
प्यार और मुस्कानों की छाँव में , बैठ जाते हो दिल तुम ,
व्यवहार बेशक तुम्हारा मीठा है , भावों को समझते हो दिल तुम ,
तभी तो अपनों और दूजों के हाथों , लूट लिए जाते हो दिल तुम ,
कुछ तो समझो , कुछ तो जानो , इस दुनिया के तौर - तरीके ,
नहीं तो सब कुछ लुटाकर , आँसू बहाओगे दिल तुम ||
फिर एक बात समझे दोनों , चलो हम आपस में जुड़ते हैं ,
एक दूसरे के गुणों को अपनाकर , रास्ता अलग बनाते हैं ,
और अपना जीवन सुखद बनाते हैं , मिलकर हम बनाते हैं ,
दिल - ओ - दिमाग के अनुसार --- प्यार और मुस्कानों में ,
तर्क भरी सोच का गणित मिला कर ,
एक अलग सोच बनाते हैं , और नयी जिंदगी बना लेते हैं ||