यादों की नींव
यादों ने हमें रोक लिया , बीते कल की गलियों में ,
जहाँ हमारा बचपन खेला करता था , दोस्तों के बीच में ,
कितने खेल थे वहाँ ? कितने कहकहे थे वहाँ ?
आज तो मुस्कुराहटें भी , दबी - दबी सी हैं ||
आने वाले कभी बाद में , शामिल होंगे यादों में ,
समय बीतने पर हम उनको भी , बसाएँगे यादों में ,
कल तो कल हैं दोस्तों , चाहे हों बीते या आने वाले ,
बस आज ही आज है दोस्तों , जो नहीं होगा यादों में ||
यादों की अँगुली थाम कर हम , आज की सीढ़ी चढ़ पाए ,
तभी तो हम आज कह पाते हैं , यादों की नींव हमारी है ,
इसी पर आज हम खड़े हैं , दबे हुए मुस्कुराहटों में ||
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