Saturday, August 9, 2025

BOLON SEY ( KSHANIKAA )

 

                             बोलों से 

 

सूरज की किरणें जब फैलीं , इस धरती के अँगना में ,

सारे पंछी गा उठे , उस गगना के अँगना में ,

सारा जीवन हुआ है मुखरित ,इस धरती के उपवन में ,

सुंदर सा जीवन मुस्काया , होठों की गुँजन में   ||  

 

जीवन उतरा जब धरा पर , प्रकृति भी मुस्काई ,

हरियाली भी छाई , फूलों ने खिल - खिल कर ,

चमन को रंगीन बनाया , आयीं तितलियाँ उड़ - उड़ कर ,

फूलों की खुश्बुओं ने  , इस जग को महकाया   || 

 

हुई साँझ जब , सूरज जब अपने घर को चला ,

लालिमा गगना में फैली , पंछी  भी लौट चले जब घर ,

धीरे - धीरे अँधियारा सा छाया ,चहक उठे सभी के घर ,

महक उठे बोलों से मिलकर   || 

 

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