बोलों से
सूरज की किरणें जब फैलीं , इस धरती के अँगना में ,
सारे पंछी गा उठे , उस गगना के अँगना में ,
सारा जीवन हुआ है मुखरित ,इस धरती के उपवन में ,
सुंदर सा जीवन मुस्काया , होठों की गुँजन में ||
जीवन उतरा जब धरा पर , प्रकृति भी मुस्काई ,
हरियाली भी छाई , फूलों ने खिल - खिल कर ,
चमन को रंगीन बनाया , आयीं तितलियाँ उड़ - उड़ कर ,
फूलों की खुश्बुओं ने , इस जग को महकाया ||
हुई साँझ जब , सूरज जब अपने घर को चला ,
लालिमा गगना में फैली , पंछी भी लौट चले जब घर ,
धीरे - धीरे अँधियारा सा छाया ,चहक उठे सभी के घर ,
महक उठे बोलों से मिलकर ||
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