संदेस - संदेस
चंद्रमा ने भिजवा दिया है , अपना संदेस मेरे नाम ,
मैं भी भिजवा रही हूँ , संदेसा उसके नाम ,
चंदा की चाँदनी जब , चमकाती है धरा को ,
धरा की तो देखो , खिल उठती है मुस्कान ||
संदेस चाँद का पढ़कर , मैं जो मुस्काई ,
चंदा के भी मुख पर देखो , मुस्कान है खिल आई ,
मुझे तो ऐसा , अहसास हुआ है जैसे ,
मैं चंदा के घर , चंदा से मिल आई ||
काश हम दोनों के ,संदेस यूँ ही चलते रहें ,
हम दोनों के बीच का , प्यार यूँ ही पलता रहे ,
जीवन की खुशियों का झूला , ऐसे ही झूलता रहे ,
काश ये लम्हें ऐसे ही तो , प्यार में डूबकर ,
पूरी मानवता में खुशियाँ , फैलाते रहें ||
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