Tuesday, June 17, 2025

MAHAKAAEN ( KSHANIKAA )

 

                           महकाएँ 

 

निंदिया की ओढ़नी ओढ़कर , सपनों की लड़ियाँ जाग गईं ,

मुस्कानों की ओढ़नी ओढ़कर ,फूलों की लड़ियाँ जाग गईं ,

खुश्बुओं की ओढ़नी ओढ़कर , बगिया सारी महक गई  || 

 

जीवन की राहें जोड़कर , जब साथ में हम चलते हैं ,

मंजिल तो दूर नहीं है , पग - पग हम चलते जाते हैं  ,

मंजिल को पाने के लिए , जीवन भर हम चलते जाते हैं  || 

 

राही जब एक मंजिल के हों , तो सारा ही रास्ता ,

एक मुस्कान  के साथ  , बीत जाता है ,

समय भी जल्दी ही , बीत जाता है ,

चलो मुस्कान बनकर ,  अपनी बगिया महकाएँ  || 

 

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