साँकल
खोल दे साँकल , अपने द्वार की चंदा ,
तभी तो तेरी दोस्त , आएगी अंदर चंदा ,
मिलेंगे दोनों दोस्त , बहुत दिन बाद चंदा ,
होंगी ढेरों बातें , आपस में चंदा ||
तेरा द्वार जब खुलेगा , हम दोनों मिलेंगे ,
चाय की चुस्की के संग , दोनों बातें करेंगे ,
मुस्कानों में डूब सारे , खुश हम को करेंगे ,
ऐसे ही तो जीवन , व्यतीत हम करेंगे ||
रोज मिलें ना मिलें हम , मगर जल्दी हम मिलेंगे ,
दोस्ती की मुस्कुराहटें , हम साथ में जियेंगे ,
इन्हीं मुस्कुराहटों में तो , हम डूबे रहेंगे ||
अब जाती हूँ मैं , तू द्वार बंद कर ले चंदा ,
अपने द्वार की तू , साँकल चढ़ा ले चंदा ,
फिर से जब मैं आऊँगी , साँकल खड़काऊँगी चंदा ,
तब आज की तरह , तू खोलना साँकल अपने द्वार की चंदा ||
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