दस्तूर
ना चाहते हुए भी हम दोस्तों ,
दूजों के किए गलत व्यवहार को ,सहते चले गए ,
कि शायद सब कुछ ठीक हो जाए ,
मगर सब कुछ बिगड़ता चला गया ||
मौसम की गर्मी की तरह , सब कुछ जलता चला गया ,
हमने सोचा मौसम साथ देगा ,
मगर ना बदरा छाए , और ना बारिश ही हुई ||
काश कुछ समझ आ जाता , हम बदलते चले जाते ,
मगर अब क्या कर सकते हैं ?
कुछ भी नहीं बदल सकता है दोस्तों ||
दस्तूर है दुनिया का , अपने मन की चलाओ ,
चाहे दूसरा परेशान हो ,
और यही रास्ता सब अपनाते हैं , अपने मन की चलाते हैं ||
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