Saturday, June 7, 2025

DASTOOR ( KSHANIKAA )

 

                       दस्तूर 

 

ना चाहते हुए भी हम दोस्तों , 

दूजों के किए गलत व्यवहार को ,सहते चले गए ,

कि शायद सब कुछ ठीक हो जाए ,

मगर सब कुछ बिगड़ता चला गया  || 

 

मौसम की गर्मी की तरह , सब कुछ जलता चला गया ,

हमने सोचा मौसम साथ देगा , 

मगर ना  बदरा  छाए , और ना बारिश ही हुई  || 

 

काश कुछ समझ आ जाता , हम बदलते चले जाते ,

मगर अब क्या कर सकते हैं  ?

कुछ भी नहीं बदल सकता है  दोस्तों  || 

 

दस्तूर है दुनिया का , अपने मन की चलाओ ,

चाहे दूसरा परेशान हो , 

और यही रास्ता सब अपनाते हैं , अपने मन की चलाते हैं   || 

 

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