अधिकार
अपने जीवन में हम ,लगातार अपने कर्त्तव्य पूरे करते हैं ,
पूरी जिम्मेदारी से कर्त्तव्य पथ पर ,चलते रहते हैं ||
ऐसा करते -करते हम ,जिन्हें प्यार करते हैं ,
उन्हें कुछ अधिकार ,दिए चले जाते हैं ||
उन्हीं अधिकारों को ,देते हुए हम भूल जाते हैं ,
कि इन अधिकारों की ,कोई सीमा होनी जरूरी है ||
हम बेहिसाब अधिकार दे देंगे ,तो आगे की राह कैसी होगी ?
हमें पता तब चलता है ,जब वह राह हमारे सामने आती है ||
अधिकार लेने वाले ,हमारे हर कदम पर अपने मिले ,
अधिकार का ताला जड़ देते हैं ,और हम कैदी बन जाते हैं ||
हमारे हँसने ,हमारे रोने ,हमारी जिंदगी के हर कदम पर ,
वो अपना अधिकार मान कर ,हमें घर में ही कैदी बना लेते हैं ||
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