भिन्न - भिन्न
सागर बने जब धरा पर , अतुल जल का भंडार ,
जीवन उपजा सागर में , बना तभी संसार ,
अलग - अलग बनीं योनियाँ , बने अनगिन प्रकार ,
भिन्न - भिन्न ही था , उन सबका आकार ||
सागर के अंदर , जीवन ने ली एक अँगड़ाई ,
अलग - अलग था उनका भी रूप - रंग ,
अलग - अलग थे उनके भी ढंग ,
जिनको देख सभी जन , रह जाते हैं दंग ||
बने जंतु और जीव , पेड़ - पौधे भी बने ,
सभी का अलग प्रकार का जीवन था ,
रूप - रंग सबका अलग , जीवन यापन सभी अलग ,
इसी तरह सभी की उपयोगिता अलग ||
No comments:
Post a Comment