खुले दिल से
मत सोचो कौन , कब और क्यों बदल गया ?
ये सब तुम्हारे वश में नहीं है दोस्तों , तो सोचो भी क्यों ?
तुम स्वयं भी तो बदल रहे हो दोस्तों ,
उम्र बढ़ रही है , साथ में शरीर में बदलाव आएँगे ही ||
शारीरिक शक्ति भी कम होती जाती है ,
सहन शक्ति की सीढ़ी ,कदमों को उतारने लगती है ,
पुरानी यादें दिल में उमड़कर , सीढ़ी चढ़ जाती हैं ,
तो दोस्तों मत सोचो , ऐसा क्यों हो रहा है ??
सब कुछ कैसे , और क्यों बदलता है ?
बदलाव है जीवन का नियम , प्रकृति का नियम ,
तो फिर ये क्यों और कैसे , कब और कौन ?
हर बदलाव को स्वीकार करो , खुले दिल से ||
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