Wednesday, July 23, 2025

DHAAII AAKHAR ( DOHA )

 

                              ढाई  आखर 

 

संत कबीर दास जी ने कहा था दोस्तों -- ,

पोथी पढ़ि - पढ़ि जुग  भया , पंडित भया ना कोय ,

ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय  || 

 

दोस्तों सच है , बिल्कुल सच है ,

पर हम कुछ अलग कहना चाहते हैं ,

पोथी पढ़ि - पढ़ि जुग भया , अपना भया ना कोय ,

नहीं पढ़ा पाठ उन्होंने प्रेम का , तो अपना कैसे होय  ?? 

 

 कौन पढ़ाए पाठ उन्हें प्रेम का ? कैसे उन्हें समझाएँ  ?

रिश्तों की महिमा उन्हें , कैसे और कौन समझाए  ?? 

 

कौन लेगा ये जिम्मेदारी आज दोस्तों  ?

क्या आप ले सकते हैं , या कबीर दास जी  ?

काश आज वो होते तो , कितना अच्छा होता   ?? 

ठीक कहा ना मैंने  ?? 

 

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