ढाई आखर
संत कबीर दास जी ने कहा था दोस्तों -- ,
पोथी पढ़ि - पढ़ि जुग भया , पंडित भया ना कोय ,
ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय ||
दोस्तों सच है , बिल्कुल सच है ,
पर हम कुछ अलग कहना चाहते हैं ,
पोथी पढ़ि - पढ़ि जुग भया , अपना भया ना कोय ,
नहीं पढ़ा पाठ उन्होंने प्रेम का , तो अपना कैसे होय ??
कौन पढ़ाए पाठ उन्हें प्रेम का ? कैसे उन्हें समझाएँ ?
रिश्तों की महिमा उन्हें , कैसे और कौन समझाए ??
कौन लेगा ये जिम्मेदारी आज दोस्तों ?
क्या आप ले सकते हैं , या कबीर दास जी ?
काश आज वो होते तो , कितना अच्छा होता ??
ठीक कहा ना मैंने ??
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