Thursday, April 3, 2025

KADAK DAMINII KII ( JALAD AA )

 

                            कड़क दामिनी की 


एक बूँद बदरा दे जा ,

मेरे तपते अँगना की ,धरती की प्यास बुझा जा रे ,

अपनी घनी छाया में ,धरती को राहत दे जा रे ,

कब से धरती तपती है , रवि किरणों के तेज से  ?

उस तपन को कम कर जा रे  || 

 

अपनी बरखा को तू भिजवा दे , रिमझिम - रिमझिम बरसा दे ,

धरती अपनी खिलखिलाएगी ,तुम्हारे ही गीत गाएगी  रे || 


अपना दिल भी खुश हो जाएगा ,खुश होकर ये मुस्काएगा ,

मुस्का  के ये  गुनगुनाएगा ,जिससे तू भी बदरा खिलखिलाएगा रे || 


तेरी दामिनी भी चमकती जाएगी ,कड़क - कड़क के खिलखिलाएगी ,

पवन भी तुझको गगन में उड़ाएगा ,

दामिनी , पवन के साथ मिलकर ,तू भी जी जाएगा रे  || 

 

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