कभी नहीं
दिया हमने सारा प्यार , अपनों को ,
लुटा दिया हमने सब कुछ ,अपनों को ,
भूल गए हम खुद को , उनके जीवन को बनाने में ,
हम अपने जीवन को ,मगर दोस्तों नहीं पा सके ,
उस राह पर चलकर , खुद को भी ,ना दूजों को ||
जिंदगी के इस अंजाम को , सहन करने की शक्ति ,
हमारे अंदर नहीं है दोस्तों ,क्या हम गलत थे ? क्या ये अंजाम सही है ?
आपकी क्या सोच है ? ये दुनिया का दस्तूर है ,
दूसरे की भावनाओं से खेलने का ,
अपनी - अपनी ही सोच है सब की ||
कोई दूसरे के बारे में नहीं सोचता ,
अपनी जरूरतों को पूरी करना ,सभी चाहते हैं दूजों की नहीं ,
हमने जो अपनों के बारे में सोचा ,वो हमारे ,
अपनों की सोच नहीं है , तो अब हम क्या कर सकते हैं ??
क्या समय - चक्र को वापस लौटाया जा सकता है ?
बताओ दोस्तों , नहीं , नहीं ! कभी नहीं ||
No comments:
Post a Comment