धरा
रवि - किरणों का उतरा जाल , धरा पर ,
धरा पे सजाया जीवन ,किरणों ने ,
सजीव हो गई धरा , जीवन से ,
धरा ने उस जीवन को पनपाया , अपने खजाने से ||
धरा के अंदर छिपा खजाना , बाहर आया ,
भिन्न - भिन्न रूपों में , जीवन बढ़ चला ,
जीवन ने स्वयं को बढ़ाया , अलग रास्ते पर ,
धरा का अनमोल खजाना , खाली कर दिया ||
धरा भी जब खजाना लुटा चुकी , तो सख्त हुई ,
उसने लेना शुरु किया बदला , उथल - पुथल मची ,
धरा हिलने लगी , धरा पर पनपा जीवन काँपा ,
धीरे - धीरे जीवन परेशान हुआ , और दोष धरा को दिया ||
मगर क्या यह धरा का , दोष है दोस्तों ?
ये तो उस जीवन के , कर्मों का परिणाम था ,
जो उस जीवन ने , बिना सोचे - समझे किए ||
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