मानवीयता
प्रकृति का हर रंग , कभी नहीं बदलता ,
पेड़ - पौधों की अपनी रंगत है ,
फूलों की अपनी रंगत और खुश्बु है ,
फल अपना आकार ,स्वाद कायम रखते हैं ,
एक मानव ही अपना स्वाद , और रंग बदलता है ||
नदियों का जल स्वच्छता , और मिठास से भरपूर है ,
सागर अपनी गहराई , और खारापन लिए हुए है ,
झरनों की फितरत भी , अनोखी अदा लिए हुई है ,
सिर्फ मानव की फितरत ही , कड़वाहट और क्रोध से भरपूर है ||
पवन अपनी शीतलता , लिए बहती रहती है ,
दामिनी अपनी कड़क लिए , चमकती रहती है ,
बरखा धरा और , उस पर बसे जीवन को ,
जीने के सभी साधन ,उपलब्ध कराती है ||
बस मानव ही प्रकृति का ,
और अपना विनाश करने में लगा हुआ है ,
अपनी मानवीयता को खत्म करने में लगा है ||
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