गुलमोहर
अंकुरित हो बीज एक,
बना पौधा ,
कोमल ! हाँ , कोमल पत्तियों को ,
वो हाथ का स्पर्श ,
जैसे ,
नवजात शिशु के नन्हे - नन्हे हाथों का स्पर्श ,
बढ़ती शाखाओं को देखने की अनुभूति ,
जैसे बढ़ता प्यार तेरा ।
धीरे - धीरे बना तरू ,
तेरे प्यार सा मज़बूत.
अरे ! ये कलियाँ ,
ढेर सी ,
देखते - देखते कलियाँ चिटकीं ,
फूल खिले आँखों के सामने ही ,
पल्लवित गुलमोहर ,
उसे निहारती मैं ,
तेरे प्यार की तरह ।
विशाल गुलमोहर ,
फूला मेरे सामने ,
और मेरे मन को ,
सजा गया जैसे ,
अपने रंगों से ,
तपते मौसम में भी ,
शीतलता दे गया मुझको ।