Saturday, February 26, 2022

SAVAN MEIN PHAAGUN ( GEET )

 

             सावन में फागुन 


सावन की रिमझिम बरखा में ,

याद आया मुझे पिछला फागुन ,

जीने की नहीं तमन्ना है ,

फागुन मुझको भी लेता जा | 

 

हर साल मनाती थी तुझ को ,

हर बार सजी थी रंगों से ,

सखियों का रंग वो  कच्चा था ,

तू साथ में उस को लेता जा | 


थी आस पिया के मिलने पर ,

 तुझ को फिर और मनाऊँगी ,

पर आज खड़ी हूँ राहों में ,

जीवन तू मेरा लेता जा | 

 

हर बार अगर तू आया था ,

और मैंने तुझे मनाया था ,

फिर  अब क्यों तूने आ कर के ,

कच्चे रंग लगा कर के ,

तूने मुझे तड़पाया था | 


काश ना अब की तू आता ,

मैं खुद आ जाती तेरे पास ,

ऐसा जो गर हो जाता तो ,

रहती ना अधूरी मेरी प्यास | 


मेरी खुशियों को लेकर के ,

मुझको छोड़े क्यूँ जाता है ,

जब खुशियाँ छीन चला है तू ,

तो जीवन को भी लेता  जा | 




Thursday, February 24, 2022

CHAND AADHA (CHANDRAMA )

 

                    चाँद आधा   

 

दुनिया में चमके चाँद ,ज्यूँ आधा ,

दुनिया के चेहरे पर ,मुस्कान उभरे ज्यादा | 


आधा सा चंदा ,चमके जब गगन में ,

बच्चे ज्यूँ खिलखिलाएँ ,घर के आँगन में | 


पूनम का चंदा ,पूरा गोल ही तो होता ,

फैलाए चाँदनी वो ,चहुँ ओर इस जहां में | 


चाँदी सा जहां चमके ,नहा के चाँदनी में ,

साथी भी रूप देखे ,जीवन संगिनी में | 


आँखों में उस समय ही ,चमके गगन का चंदा ,

सारा ही रूप उतरे ,साथी की धड़कनों में | 


Tuesday, February 22, 2022

CHAL RAHE ( RATNAKAR )

 

              चल रहे 

 

रत्नाकर तुम चले कहाँ ? 

रत्नाकर तुम पले कहाँ ? 

कहीं तो तुम पल रहे ,

कुछ तुम्हारे अंदर पल रहे | 

 

ऊँचे पर्वतों से नदियाँ आतीं ,

ठंडा और मीठा जल लातीं ,

वही नदियाँ तुम्हें पालतीं रत्नाकर ,

मगर अनेक जीव तुम्हारे अंदर पल रहे | 

 

सभी जीव हलचल लाते हैं ,

लहरें उथल -पुथल करती हैं ,

मगर तुम  तो शांत प्रकृति ,

शांत भाव से तुम तो चल रहे | 


नहीं कह सकते तुमसे हम ,

कभी तो अशांत हो जाओ तुम ,

तुम गर रत्नाकर हुए अशांत ,

दूर -दूर तक लाखों जीव सो जाएँगे ,

कहीं ,कोई ना कह पाएगा ,हम चल रहे | 


ऐसे तो रत्नाकर ,तुम शांत ही अच्छे ,

चंचल लहरों की चंचलता में छिपे ,

खारे पानी का भंडार लिए ,

धीमी चाल में तुम चल रहे | 


Thursday, February 17, 2022

BADALA PRAKRITI KAA ( JIVAN )

   

                        बदला प्रकृति का 

 

ब्रह्मांड के रचेता ने ,बनाया जब ये संसार ,

बने तब बहुत से सूरज ,किया उजाला उनमें ,

अनगिनत सूरज के चारों ओर ,घूमें बहुत से गोले ,

बना एक सौर मंडल अपना ,बनी धरा अपनी उनमें | 

 

बाकि अन्य ग्रह कहलाए ,घूमते जा रहे सभी ,

कुछ पास सूरज के ,और कुछ दूर सूरज से उनमें ,

जो ग्रहों के चक्कर काटें ,उनका नाम उपग्रह था ,

एक चमकीला ,मुस्कुराता ,चाँद भी था उनमें | 


सूरज की धूप ,गर्मी से ,धरा पर सागर भी गहराए ,

कभी बादल बने ऊँचे ,और धरा पर नीर बरसाए ,

कभी ठंडी पवन के झोंके ,धरती पे लहराए ,

कभी तूफ़ान ,चक्रवात भी ,यहाँ बवंडर मचाए | 

 

उपजे जीव -जंतु भी ,साथ उनके ठिकाने भी ,

वो थे निर्भर उन पेड़ -पौधों पर ,जो उनसे उपजे थे पहले ,

कुछ थे धरा के वासी ,कुछ पानी के वासी थे ,

मगर सारे के सारे ही ,एक दूजे के साथी थे | 

 

फिर आया मानव धरा पर ,बना वो साथी इन सबका ,

मगर फिर सोच ने उसकी ,बिगाड़ा साथ को इनके ,

लीं सभी सुख सुविधा उसने ,इसी प्रकृति से ,

मगर साथी नहीं बनकर ,एक दोस्त ना बनकर ,

समझा उसने खुद को मालिक ,किया शोषण प्रकृति का | 

 

आज प्रकृति भी समझी है ,मानव का ये रवैया ,

तभी उसने भी रूप बदला ,आई क्रोध में वह भी ,

रुलाया उसने मानव को ,ले रही है वह बदला ,

सब कुछ खो बैठेगा मानव ,अगर वह अब नहीं संभला | 

 


Tuesday, February 15, 2022

LIKH DOON KYAA ? ( PREM )

 

                   लिख दूँ क्या ? 

 

कहो मेरे साजना ,

मैं लिख दूँ कहाँ तेरा नाम ? 

बदरा पे लिख दूँ क्या ? 

वह तो चमकेगा ,दामिनी की तरह ,

दुनिया सारी देखेगी और मुस्काएगी | 

 

गगन पे लिख दूँ क्या ? 

मगर ना दिन को दिखेगा ,ना रात को ,

दिन में धूप में छिपेगा और रात में अंधकार में ,

दुनिया क्या देखेगी ?और कैसे मुस्काएगी ? 

 

फूलों पे लिख दूँ क्या ? 

मगर रंगों में छिप जाएगा ,

तितली के पंखों में छिप जाएगा ,

दुनिया तो फूलों को देख मुस्काएगी | 

 

तितली के पंखों पर लिख दूँ क्या ? 

मगर तितली तो चंचल हैं  ,

उड़ती जाएगी यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ ,

मगर दुनिया तो उस चंचला को देख मुस्काएगी | 

 

दिल पे लिख दूँ क्या ? 

वहाँ तो लिखा ही है साजना ,

मगर वहाँ तो कोई नहीं देख पाएगा ,

दुनिया क्या देख कर मुस्काएगी ? 

 

 

Saturday, February 12, 2022

LUKA CHHUPI ( JIVAN )

 

                  लुका छुपी 

 

अनजानी नगरी के ,अनजाने रास्ते ,

लुका छुपी खेलें तो ,खेलें कहाँ ? 

संगी ना साथी हैं ,सखियाँ ना दोस्त हैं ,

खेलें तो खेलें कहाँ ? 

 

आ तो गए हैं हम ,अनजानी नगरी ,

चलती नहीं है ,भागती है नगरी ,

बगिया ना पार्क हैं ,

खेलें तो खेलें कहाँ ? 

 

इमारतें हैं ऊँची -ऊँची ,

भीड़ है भारी यहाँ ,

आँगन ना ,दरीचे हैं ,

खेलें तो खेलें कहाँ ? 

 

बचपन का खेल है ये ,

साथियों का मेल है ये ,

पचपन में लुका छुपी ,

बुलाओ तुम ,आओ तुम ,

खेल लें थोड़ी देर ,तो मगर ,

खेलें तो खेलें कहाँ ? 

 

 

 

Friday, February 4, 2022

SHEESH NAVAO ( DESH )

        

                 शीश नवाओ

 

सन 1947 ,

भारत हुआ आज़ाद ,भारत हुआ स्वतंत्र ,

 मगर ! अलग -अलग थे राज्य ,

सब भाषाओं के अनेक थे राज्य | 


हरेक राज्य का राजा अलग ,

एक देश नहीं था ,एक परिवेश नहीं था ,

ऐसे समय में --एक हिम्मत वाला आया ,

उसने ऐसा अलख जगाया | 


हिम्मत वाला जादूगर था ,

उसने अपना जादू चलाया ,

सभी राजाओं को समझाया ,

नहीं समझदारी अकेले रहने में ,

हिल -मिल कर रहना अच्छा ,

हाथ पकड़कर चलना सच्चा | 


आओ -आओ सब मिल जाएँ ,

अपना एक गणतंत्र बनाएँ ,

तभी तो हम पनपेंगे ,

तभी तो विकसित होंगे | 


चल गया जादू उस जादूगर का ,

एक -एक कर राजा आए ,

एक झंडे के नीचे आए ,

एक झंडे को सैल्यूट किया | 


छोटे -छोटे राज्यों ने मिल ,

एक बड़ा गणतंत्र बनाया ,

दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र ,

वह हिम्मत वाला था कौन ? 

वह जादूगर था कौन ? 

वह हिम्मत वाले ,जादूगर थे -- सरदार पटेल ,

हाँ ! अपने सरदार वल्लभ भाई पटेल ,

हम करते हैं सैल्यूट उन्हें ,

शीश नवाते हैं हम उनको |