चल रहे
रत्नाकर तुम चले कहाँ ?
रत्नाकर तुम पले कहाँ ?
कहीं तो तुम पल रहे ,
कुछ तुम्हारे अंदर पल रहे |
ऊँचे पर्वतों से नदियाँ आतीं ,
ठंडा और मीठा जल लातीं ,
वही नदियाँ तुम्हें पालतीं रत्नाकर ,
मगर अनेक जीव तुम्हारे अंदर पल रहे |
सभी जीव हलचल लाते हैं ,
लहरें उथल -पुथल करती हैं ,
मगर तुम तो शांत प्रकृति ,
शांत भाव से तुम तो चल रहे |
नहीं कह सकते तुमसे हम ,
कभी तो अशांत हो जाओ तुम ,
तुम गर रत्नाकर हुए अशांत ,
दूर -दूर तक लाखों जीव सो जाएँगे ,
कहीं ,कोई ना कह पाएगा ,हम चल रहे |
ऐसे तो रत्नाकर ,तुम शांत ही अच्छे ,
चंचल लहरों की चंचलता में छिपे ,
खारे पानी का भंडार लिए ,
धीमी चाल में तुम चल रहे |
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