Thursday, February 17, 2022

BADALA PRAKRITI KAA ( JIVAN )

   

                        बदला प्रकृति का 

 

ब्रह्मांड के रचेता ने ,बनाया जब ये संसार ,

बने तब बहुत से सूरज ,किया उजाला उनमें ,

अनगिनत सूरज के चारों ओर ,घूमें बहुत से गोले ,

बना एक सौर मंडल अपना ,बनी धरा अपनी उनमें | 

 

बाकि अन्य ग्रह कहलाए ,घूमते जा रहे सभी ,

कुछ पास सूरज के ,और कुछ दूर सूरज से उनमें ,

जो ग्रहों के चक्कर काटें ,उनका नाम उपग्रह था ,

एक चमकीला ,मुस्कुराता ,चाँद भी था उनमें | 


सूरज की धूप ,गर्मी से ,धरा पर सागर भी गहराए ,

कभी बादल बने ऊँचे ,और धरा पर नीर बरसाए ,

कभी ठंडी पवन के झोंके ,धरती पे लहराए ,

कभी तूफ़ान ,चक्रवात भी ,यहाँ बवंडर मचाए | 

 

उपजे जीव -जंतु भी ,साथ उनके ठिकाने भी ,

वो थे निर्भर उन पेड़ -पौधों पर ,जो उनसे उपजे थे पहले ,

कुछ थे धरा के वासी ,कुछ पानी के वासी थे ,

मगर सारे के सारे ही ,एक दूजे के साथी थे | 

 

फिर आया मानव धरा पर ,बना वो साथी इन सबका ,

मगर फिर सोच ने उसकी ,बिगाड़ा साथ को इनके ,

लीं सभी सुख सुविधा उसने ,इसी प्रकृति से ,

मगर साथी नहीं बनकर ,एक दोस्त ना बनकर ,

समझा उसने खुद को मालिक ,किया शोषण प्रकृति का | 

 

आज प्रकृति भी समझी है ,मानव का ये रवैया ,

तभी उसने भी रूप बदला ,आई क्रोध में वह भी ,

रुलाया उसने मानव को ,ले रही है वह बदला ,

सब कुछ खो बैठेगा मानव ,अगर वह अब नहीं संभला | 

 


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