श्रृद्धा सुमन
सागर नहीं हलाहल देता , ये तो देता है हाला |
सारी धरती बन जाती है , मधुर , मदिर , मादक प्याला |
शुभ्र चंदनिया है बन जाती , सुन्दर सी साकी बाला |
अम्बर से है देख रहा , बच्चन अपनी मधुशाला |
चला गया है पथिक अकेला , मस्ती में पीकर हाला |
छूट गया है उसका सुन्दर , स्वयं रचित मादक प्याला |
नहीं है उसके साथ अभी , कोई सुन्दर साकी बाला |
मेरे श्रृद्धा सुमन पहुँचेंगे, हरिवंश रॉय की मधुशाला |
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