सोया क्यूँ ना
बरस करोड़ों बीत गए हैं ,
सागर तू सोया क्यूँ ना ?
नींद से बोझिल पलकें तेरी ,
सपनों में खोया क्यूँ ना ??
आ गोदी में लोरी गाऊँ ,
बच्चों जैसा तुझे सुलाऊँ ,
नींदों में तू सो जाएगा ,
परीलोक में खो जाएगा ,
बाँहों का झूला तुझे झुलाऊँ ॥
किरनें रवि की अंदर नहीं आतीं ,
धवल चाँदनी द्वार पर ही रुक जाती ,
बिजली नहीं तेरी दुनिया में ,
दीए भी देखो नहीं जलाए ,
नन्हें दीए दो - चार जलाऊँ ॥
अंदर पलते जीवों की नजरें ,
हर ओर तलाशें उजियारे को ,
उन किरनों बिन अंधियारा ही ,
मिलता जाता है नज़रों को ,
किरनों को नन्हा सा झरोखा ,
अब तो सागर दे दे ना ॥
तेरी ऊँची - नीची ,उठतीं - गिरतीं लहरें ,
कल - कल , छल - छल शोर मचातीं ,
अंदर पलते सोए जीवों को ,
गहरी नींदों से सदा जगातीं ,
समझ गयी मैं सागर तेरी ,
आयी नींदें वही भगातीं ॥
सभी जीव विश्राम हैं करते ,
तू ही करता रहता काम ,
जीवन नैया खेते - खेते ,
मिलता नहीं तुझे आराम ,
कंधा मेरा थाम ले सागर ,
पा जाएगा कुछ आराम ॥
झपकी सी जो मिल जाएगी ,
थोड़ी थकन उतर जाएगी ,
सुबह उठेगा ले अँगड़ाई ,
लहरों से भरेगी अँगनाई ,
जोश - जोश से करना काम ,
कुछ तो कर तू भी विश्राम ॥
रात बनी सोने को सागर ,
हर कोई सो जाता है ,
तू ही अटल बना है सागर ,
पलक नहीं झपकाता है ,
चल आजा कंधे पे सर रख ,
परीलोक में खो जा ना ॥
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