आशीर्वाद
अरे ! ये क्या ?
मैं हूँ हवा में ,
उड़ते हुए , हाँ , उड़ते हुए ,
कभी तो ऐसे उड़ी ना थी ॥
परों से हल्की होके ,
कैसे आयी मैं यहाँ ?
बदरा के पास में ,
पंछियों के साथ में ॥
तभी बदरा के बीच से ,
उड़ी मैं ऊपर - ऊपर ,
छुअन बदरा की ठंडी - ठंडी ,
पानी - पानी हो जाऊँगी मैं ॥
पर यह क्या ?
ना हुई मैं गीली ,
ना हुई पानी - पानी ,
क्यों ??
अचानक नज़र गई नीचे ,
दिखाई दी धरती ,
मेरा घर ,
मेरा कमरा ॥
मैं पलंग पर लेटी थी ,
मैं दो जगह कैसे ?
क्या वो मैं हूँ ?
क्या ये मैं हूँ ??
पर कैसे ?
दो जगह मैं कैसे ?
पर मैं कमरे के अंदर ,
कैसे देख सकती हूँ ??
तो क्या मैं रूह हूँ ?
अपनी रूह ?
क्या वो मेरा शरीर है ?
जो कमरे में है ॥
उड़ते हुए ,
लगातार उड़ते - उड़ते ,
अनजानी सी यात्रा ,
एक लंबी यात्रा ॥
तभी दिखाई दिया ,
एक साया ,
देखकर आँखों को जैसे ,
ठंडक मिली ॥
दिल को सुकून मिला ,
उसने बढ़ाया हाथों को ,
थामते ही उन हाथों को ,
उस ओर खिंच गई मैं ॥
मेरे सिर को सहलाया ,
उस साये ने ,
कौन है वो ?
अनजाना साया ॥
जिसका स्पर्श है ,
परों से हल्का ,
दिल को सुकून देने वाला ,
अनजाना , पर , हर अहसास से परे ॥
खुशियों से भरा अहसास ,
कभी पहले नहीं हुआ ,
ये अहसास ,
ये नया रोमांच ॥
मुस्कराहट उस साये की ,
देखकर लगा ,
क्या ये ईश्वर हैं ?
सृष्टि के निर्माता ??
सृष्टि चालक ,
जन - जन पालक ,
हाँ - हाँ , यही है सच ,
साया ही ईश्वर ॥
मैं ईश्वर के साथ ,
मैं ईश्वर के साए में ,
मेरी सोचों को पढ़ा ,
मुस्कुराया साया ॥
हाँ में सिर हिलाया ,
मैं तो जैसे पावन हो गई ,
धन्य - धन्य हो गई ,
जीवनी भी मेरी सफल हो गई ॥
तभी आँखें खुलीं ,
मैं नींद से जागी ,
देखा पलंग पर लेटी थी ,
क्या ये सपना था ??
पर मेरी रूह का अहसास ?
वो अनजानी छवि ,
मुस्कुराता साया , उसका स्पर्श ,
शायद मेरी रूह ने पाया आशीर्वाद ,
और अहसास उस परमात्मा का ॥
अरे ! ये क्या ?
मैं हूँ हवा में ,
उड़ते हुए , हाँ , उड़ते हुए ,
कभी तो ऐसे उड़ी ना थी ॥
परों से हल्की होके ,
कैसे आयी मैं यहाँ ?
बदरा के पास में ,
पंछियों के साथ में ॥
तभी बदरा के बीच से ,
उड़ी मैं ऊपर - ऊपर ,
छुअन बदरा की ठंडी - ठंडी ,
पानी - पानी हो जाऊँगी मैं ॥
पर यह क्या ?
ना हुई मैं गीली ,
ना हुई पानी - पानी ,
क्यों ??
अचानक नज़र गई नीचे ,
दिखाई दी धरती ,
मेरा घर ,
मेरा कमरा ॥
मैं पलंग पर लेटी थी ,
मैं दो जगह कैसे ?
क्या वो मैं हूँ ?
क्या ये मैं हूँ ??
पर कैसे ?
दो जगह मैं कैसे ?
पर मैं कमरे के अंदर ,
कैसे देख सकती हूँ ??
तो क्या मैं रूह हूँ ?
अपनी रूह ?
क्या वो मेरा शरीर है ?
जो कमरे में है ॥
उड़ते हुए ,
लगातार उड़ते - उड़ते ,
अनजानी सी यात्रा ,
एक लंबी यात्रा ॥
तभी दिखाई दिया ,
एक साया ,
देखकर आँखों को जैसे ,
ठंडक मिली ॥
दिल को सुकून मिला ,
उसने बढ़ाया हाथों को ,
थामते ही उन हाथों को ,
उस ओर खिंच गई मैं ॥
मेरे सिर को सहलाया ,
उस साये ने ,
कौन है वो ?
अनजाना साया ॥
जिसका स्पर्श है ,
परों से हल्का ,
दिल को सुकून देने वाला ,
अनजाना , पर , हर अहसास से परे ॥
खुशियों से भरा अहसास ,
कभी पहले नहीं हुआ ,
ये अहसास ,
ये नया रोमांच ॥
मुस्कराहट उस साये की ,
देखकर लगा ,
क्या ये ईश्वर हैं ?
सृष्टि के निर्माता ??
सृष्टि चालक ,
जन - जन पालक ,
हाँ - हाँ , यही है सच ,
साया ही ईश्वर ॥
मैं ईश्वर के साथ ,
मैं ईश्वर के साए में ,
मेरी सोचों को पढ़ा ,
मुस्कुराया साया ॥
हाँ में सिर हिलाया ,
मैं तो जैसे पावन हो गई ,
धन्य - धन्य हो गई ,
जीवनी भी मेरी सफल हो गई ॥
तभी आँखें खुलीं ,
मैं नींद से जागी ,
देखा पलंग पर लेटी थी ,
क्या ये सपना था ??
पर मेरी रूह का अहसास ?
वो अनजानी छवि ,
मुस्कुराता साया , उसका स्पर्श ,
शायद मेरी रूह ने पाया आशीर्वाद ,
और अहसास उस परमात्मा का ॥
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