सागारिका
छू कर तेरी लहर चंचला , मन गहराता जाता है ,
खारा पानी ही सागर तेरा , हृदय तृप्त कर जाता है ।
पैरों में बेड़ियाँ डाल गयीं , चंचल लहरें सागर तेरी ,
प्यारे से इस बंधन में तो , मेरा उर भी बंध जाता है ।
नहीं कदम चल पाते मेरे , सागर तुझसे दूर कभी ,
तू भी तो कदम बढ़ा दे सागर , क्यों तू यों रुक जाता है ।
तेरी नगरी है सपनों की , निद्रा में ही भरमाती है ,
पर तू तो मायावी है सागर , हर वक्त मुझे भरमाता है ।
तू तो है जल का सागर ही , मैं प्यार का सागर हूँ सागर ,
अहसास ये होता है जैसे तू , सागारिका बुलाता है ।
ऐसी पुकार पे तो सागर , मैं उड़ के भी आ जाऊँगी ,
डूब प्यार में कोई तो , डोर बिना ही आता है ।
सागारिका है सागर की , डोरी नहीं बंधी कोई ,
फिर भी प्यार नहीं झूठा , सच के पुल पे चढ़ आता है ।
शोर मचातीं चंचल लहरें , लातीं तेरा संदेसा हैं ,
पकड़ हाथ को चलीं खींचतीं , तू ही मुझे बुलाता है ।
बिना बँधे आती हूँ मैं तो , लहरों के इस आँचल में ,
नील - गगन रंग का आँचल , शीतल पवन उड़ाता है ।
दूर नहीं जाने पाऊँगी ,बंध कर प्यार के आँचल से ,
प्यार की ये मजबूत गाँठ , नहीं खोल कोई पाता है ।