रेलगाड़ी
दौड़ चली लोहे के पथ पे ,
छोड़ साथ संगी साथी का ,
आस - पास की हरेक डगरिया ,
कच्ची - कच्ची , पक्की - पक्की ।
आते गए पेड़ -पौधे ,
उल्टे रस्ते में दौड़े ,
कहा संग मेरे चल दो ,
पर जाने क्यों नहीं चले ।
सीना ताने खड़ीं पहाड़ियाँ ,
रस्ता रोके मानो मेरा ,
नहीं रोक पायीं वो मेरा ,
रस्ता मेरा था मेरा ।
फूली सरसों खेतों में ,
आस - पास में रंग भरा ,
खुशबू भरी पाई राहों में ,
रंग साथ में मिला हुआ ।
पीली हरियाली है फ़ैली ,
खेतों का रंग अनूठा है ,
प्यार के बीज बीजे हैं जिसने ,
पाया प्यार समूचा है ।
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