लहर तुम्हारी
आओ सागर धीरे - धीरे , कदम बढ़ाओ एक तुम ,
आयी हूँ मिलने मैं , तुमसे ही नगरिया तुम्हारी ।
नहीं नाप सकती गहराई , नहीं नाप सकती चौड़ाई ,
और नहीं गिन सकती सागर , चंचल लहरिया तुम्हारी ।
शांत दिखाई देते तुम तो , शायद नीचे तूफ़ान छिपा हो ,
ऊपर नहीं दिखाई देता , अन्दर रत्नों का भण्डार छिपा हो ,
रत्नों के आगार हो तुम तो , जाने नहीं गहरिया तुम्हारी ।
हर नदिया आती है सागर , उतर - उतर ऊँचे पर्वत से ,
मिल जाती है खारे जल में , खो जाती खारे सागर में ,
मैं भी सागर वही नदी सी , अपनाऊँगी खार तुम्हारी ।
नहीं जानती मैं तो सागर , तुम हो खुश या तुम नाराज ,
आगे बढ़ तुम गले मिले ना , नहीं किया स्वागत - सत्कार ,
फिर भी सागर मैं तो आज , बन जाऊँगी लहर तुम्हारी ।
बनी लहर जो तेरी सागर , साथ तेरे रम जाऊँगी ,
यहीं साथ में रहकर सागर , जीवन सरस बिताऊँगी ,
तू तो है मेरा ही सागर , मैं हूँ साथी लहर तुम्हारी ।
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