समंदर (स्पर्श तुम्हारा ) भाग -- 30
प्यार भरा स्पर्श तुम्हारा , मिल पाया है सागर आज ,
तुम सागर छलिया बन बैठे , छेड़ प्यार का पावन राग ।
बड़ी गहन गहराई उतरी , सागर तेरे अंतर में ,
इस अतुलित गहराई को , नाप सका न मानस आज ।
बीना की जो छिड़ी रागिनी , सागर तेरे अंतस में ,
भूल गया हर दिल मानव का , तूफानों का हाहाकार ।
दुनिया बसी तेरी झोली में , अनजानी , मीठी , सपनों सी ,
उसने दिया है नाम तुझे , सागर ही है रत्नाकार ।
चंचल - चंचल लहरें तेरी , अतिथि को हैं सदा पुकारें ,
नयन सभी अनजान पथिक के , सागर जी भर तुझें निहारें ,
लगता उन सभी नयनों से , स्वप्न हुए उनके साकार ।
आयीं कभी इधर से , और कभी उधर से , लहर चंचला ,
मृगनयनी सी , अल्हड़ सी और मधुर सी लहर चंचला ,
पकड़ हाथ और जकड़ पाँव को , मूर्तिमान कर देतीं आज ।
तेरी सदा संगिनी लहरें , लिए साथ में तेरा प्यार ,
नहीं दूर तक जातीं हैं , बँधी डोर से तेरे साथ ,
सभी पथिकों तक हैं पहुँचाती , फिर भी सागर तेरा प्यार ।
प्यार तेरे को पाकर सागर , नव उल्लास मिला है आज ,
लहरों की किल्लोल देखकर , मन का कमल खिला है आज ,
सुन - सुन कर लहरों के स्वर को , भँवरों ने भी छेड़ा राग ।
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