रेत
पाँव तले की गीली रेती , क्यों खिसकाते हो सागर ,
जल ही जल भूमि रेतीली , तुम तो रत्नों के आगार ।
जल है खारा तुम तो हो , खारे जल का ही भंडार ,
नदियाँ आ मिलतीं हैं तुमसे , लेकर मीठे जल की धार ।
पर क्या रह पातीं हैं नदियाँ , अपना रूप - स्वरुप लिए ,
रूप बदल कर वो मिल जाती हैं , सागर का लेकर आकार ।
रेत खिसकती जाती है , पाँव धंसे हैं रेती में ,
हुई मूर्तिमान मैं तो , सागर तेरी रेती में ।
नहीं हिला सकती पाँवों को , दांये - बांये किसी ओर ,
पीछे तो ना हटना चाहा , पर बढ़ ना सकी आगे की ओर ।
लहर चंचला आतीं सागर , लेकर तेरा सन्देश अपार ,
इन्हीं चंचला लहरों का तो , सागर तुम ही हो संसार ,
प्यार सिमट आया है इनमें , सागर तेरा - मेरा प्यार ।
तेरे प्यार में डूबी सागर , संसार से दूर हुई मैं तो ,
चाहत तेरी मिल जाने से , प्यार में सराबोर हुई मैं तो ,
दिल तेरे प्यार में डूबा है , प्यार का है अपना संसार ।
देखा है फैलाव तुम्हारा , लहरों का संगीत मधुर ,
सागर तुम तो रोज़ ही सुनते , ये संगीत ये मीठे सुर ,
मेरे दिल ने आज सूना , झंकृत स्वर , बीना के तार ।
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