मानव और विज्ञान
विद्या का वरदान मिला है , जीवन को सम्मान मिला है ,
इस विद्या के भेद अनेक , उसमें से विज्ञान है एक ।
ज्ञान का रस्ता खोला जिसने , मानव सोचों को बदला जिसने ,
राहों को आसान बनाया , सुखमय जीवन जिससे पाया ,
इस जीवन की कथा अनेक , उसमें से विज्ञान है एक ।
हर सुविधा मानव ने पायी ,गर्मी में है ठंडक पायी ,
सर्दी की ठंडी रातों में , मानव ने गर्माहट पायी ,
हर मौसम के रंग अनेक , पर विज्ञान का रंग है एक ।
मानव ने अपनी सोचों से , थाह जगत की पायी ,
तभी तो अब मानव है जाना , जीवन की अंगड़ाई ,
जीवन तब उपजा था जग में , जब जग डूबा था जल में ,
उस जीवन की कथा बनी है , इतिहास का पहला पेज ।
नहीं ख्वाब तक पहुँचा मानव , कैसे देखे ख्वाब सभी ,
पूरे किए मगर सपने , पायी ना उनकी थाह कभी ,
इन ख़्वाबों की ही उड़ान तो , होती है प्रकाश से तेज ।
ख़्वाबों से ही तो मानव , पहुँचा धरती से चाँद तलक ,
इन से ही तो मानव ने पायी , बहुत दूर जाने की ललक ,
अपनी मंजिल को पाने का , बना हुआ है उसका क्रेज ।
रुका नहीं मंजिल पर मानव , बढ़ा अनोखा क्रेज लिए ,
हर सीढ़ी पर चढ़ा है वह तो , एक नया अनुकल्प लिए ,
इस साहस के बल पर ही तो , बना इतिहास का अगला पेज ।
नए - नए विश्वास लिए , चला मनु उन्नति की राह ,
प्रकृति से पाया जो वरदान , उससे जगी बढ़ने की चाह ,
बढ़ते - बढ़ते भूला मानव , अपने इतिहास का पिछ्ला पेज ।
सागर की तह तक जा पहुँचा , अनजान सी दुनिया को जाना ,
सागर की परतों को खोला , तभी तो उसको पहचाना ,
हर लहर से उसने सीखा है , कैसे हों अनेक से एक ।
उड़ने लगा गगन में जब , बदरा को पाया पास तभी ,
चौंध दामिनी की पायी , मानव ने बिजली पायी तभी ,
उस बिजली से तो मानव ने , चमका दिए हैं भाग्य अनेक ।
धीरे - धीरे मानव ने , गगन के रंगों को जाना ,
बिखरे क्यों रंग धरा पर हैं , कैसे दिखते ये पहचाना ,
उन रंगों की छटा देखकर , डूबा रंगों में विवेक ।
रंगों से संसार सजा है , फूल खिले हैं गुलशन में ,
इन से भी विज्ञान खिला है मानव के इस जीवन में ,
जिसके लाभ उठाये मानव , उनमें से विज्ञान है एक ।
लाभों को मानव भूल गया , हानियों से मानव भरमाया ,
इसीलिए विज्ञान बन गया , इस मानव का सरमाया ,
प्रकृति खो गयी मानव की , छू कर मानव जीवन टेक ।
रूप - रंग बदला नेचर का , मानव जीवन भी गया बदल ,
ईश्वर की रचना बदली तो , बदल गया संसार सकल ,
इस बदली सी दुनिया में भी , ईश्वर के मापदंड हैं एक ।
बदल सकल दुनिया को मानव , इस भ्रम से वह भरमाया ,
मैं सृष्टि का हूँ निर्माता , मैं ही इसका सरमाया ,
मानव के इस क्रम में , मानव ही तो भरमाया ,
उसकी सोचों ने ही तो , उसके दिमाग को उकसाया ,
मगर असल में मानव तो ------
बैठा मानव घुटने टेक , खड़ा सामने विज्ञान है एक ।।
विद्या का वरदान मिला है , जीवन को सम्मान मिला है ,
इस विद्या के भेद अनेक , उसमें से विज्ञान है एक ।
ज्ञान का रस्ता खोला जिसने , मानव सोचों को बदला जिसने ,
राहों को आसान बनाया , सुखमय जीवन जिससे पाया ,
इस जीवन की कथा अनेक , उसमें से विज्ञान है एक ।
हर सुविधा मानव ने पायी ,गर्मी में है ठंडक पायी ,
सर्दी की ठंडी रातों में , मानव ने गर्माहट पायी ,
हर मौसम के रंग अनेक , पर विज्ञान का रंग है एक ।
मानव ने अपनी सोचों से , थाह जगत की पायी ,
तभी तो अब मानव है जाना , जीवन की अंगड़ाई ,
जीवन तब उपजा था जग में , जब जग डूबा था जल में ,
उस जीवन की कथा बनी है , इतिहास का पहला पेज ।
नहीं ख्वाब तक पहुँचा मानव , कैसे देखे ख्वाब सभी ,
पूरे किए मगर सपने , पायी ना उनकी थाह कभी ,
इन ख़्वाबों की ही उड़ान तो , होती है प्रकाश से तेज ।
ख़्वाबों से ही तो मानव , पहुँचा धरती से चाँद तलक ,
इन से ही तो मानव ने पायी , बहुत दूर जाने की ललक ,
अपनी मंजिल को पाने का , बना हुआ है उसका क्रेज ।
रुका नहीं मंजिल पर मानव , बढ़ा अनोखा क्रेज लिए ,
हर सीढ़ी पर चढ़ा है वह तो , एक नया अनुकल्प लिए ,
इस साहस के बल पर ही तो , बना इतिहास का अगला पेज ।
नए - नए विश्वास लिए , चला मनु उन्नति की राह ,
प्रकृति से पाया जो वरदान , उससे जगी बढ़ने की चाह ,
बढ़ते - बढ़ते भूला मानव , अपने इतिहास का पिछ्ला पेज ।
सागर की तह तक जा पहुँचा , अनजान सी दुनिया को जाना ,
सागर की परतों को खोला , तभी तो उसको पहचाना ,
हर लहर से उसने सीखा है , कैसे हों अनेक से एक ।
उड़ने लगा गगन में जब , बदरा को पाया पास तभी ,
चौंध दामिनी की पायी , मानव ने बिजली पायी तभी ,
उस बिजली से तो मानव ने , चमका दिए हैं भाग्य अनेक ।
धीरे - धीरे मानव ने , गगन के रंगों को जाना ,
बिखरे क्यों रंग धरा पर हैं , कैसे दिखते ये पहचाना ,
उन रंगों की छटा देखकर , डूबा रंगों में विवेक ।
रंगों से संसार सजा है , फूल खिले हैं गुलशन में ,
इन से भी विज्ञान खिला है मानव के इस जीवन में ,
जिसके लाभ उठाये मानव , उनमें से विज्ञान है एक ।
लाभों को मानव भूल गया , हानियों से मानव भरमाया ,
इसीलिए विज्ञान बन गया , इस मानव का सरमाया ,
प्रकृति खो गयी मानव की , छू कर मानव जीवन टेक ।
रूप - रंग बदला नेचर का , मानव जीवन भी गया बदल ,
ईश्वर की रचना बदली तो , बदल गया संसार सकल ,
इस बदली सी दुनिया में भी , ईश्वर के मापदंड हैं एक ।
बदल सकल दुनिया को मानव , इस भ्रम से वह भरमाया ,
मैं सृष्टि का हूँ निर्माता , मैं ही इसका सरमाया ,
मानव के इस क्रम में , मानव ही तो भरमाया ,
उसकी सोचों ने ही तो , उसके दिमाग को उकसाया ,
मगर असल में मानव तो ------
बैठा मानव घुटने टेक , खड़ा सामने विज्ञान है एक ।।
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