छाँवों में
पथिक अकेला चलता जाता , अनजानी सी राहों में ,
जीवन सघन होता जाता है , अनजानी सी चाहों में ॥
खुले दरीचे हैं जीवन में , कोई जो आ बस जाए ,
अपना सा बन जाए तो , बस जाए अरमानों में ॥
अगर सोच अपनी सी है , इन्द्रधनुष बन छा जाए ,
रंगों से भरे जहां मेरा , सो जाए जो बाँहों में ॥
भरी धूप की तपी दोपहरी , तन - मन सबका अकुलाए ,
ठंडी छाँव मिलेगी उसको , मेरी जुल्फों की छाँवों में ॥
साँझ की बेला ठंडी होती , अपनाले और रुक जाए ,
पथिक तुझे जीवन रस तो , मिले अमराई की छाँवों में ॥
पथिक अकेला चलता जाता , अनजानी सी राहों में ,
जीवन सघन होता जाता है , अनजानी सी चाहों में ॥
खुले दरीचे हैं जीवन में , कोई जो आ बस जाए ,
अपना सा बन जाए तो , बस जाए अरमानों में ॥
अगर सोच अपनी सी है , इन्द्रधनुष बन छा जाए ,
रंगों से भरे जहां मेरा , सो जाए जो बाँहों में ॥
भरी धूप की तपी दोपहरी , तन - मन सबका अकुलाए ,
ठंडी छाँव मिलेगी उसको , मेरी जुल्फों की छाँवों में ॥
साँझ की बेला ठंडी होती , अपनाले और रुक जाए ,
पथिक तुझे जीवन रस तो , मिले अमराई की छाँवों में ॥
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