नन्हीं बदरी
तपते हुए रवि के समक्ष , आयी बदरा की इक टुकड़ी ,
रवि की किरणों को लपेटा , अपने अंदर ही समेटा ॥
धरा बची रवि की तपन से , बयार भी शीतल बही ,
साथ ही शीतलता लेके , कल - कल जलधारा बही ॥
नन्हीं सी बदरी ने देखो , खुद को ही है मिटाया ,
गुम हुई है धीरे - धीरे , बयार में खुद को मिलाया ॥
बयार और शीतल हुई , धरा भी शीतल हुई ,
अस्तित्व बदरी का मिटा , ठंडी जलधारा बही ॥
सुंदर श्यामल सी बदरी , जग को ठंडक दे गयी ,
पूरे दिन में तपन सह कर , आसमां में खो गयी ॥
कुछ व्यक्तित्व होते ऐसे , देते दूजे को आराम ,
खुद को मिटाकर भी तो , नवजीवन दूजे को दे जाते ॥
तपते हुए रवि के समक्ष , आयी बदरा की इक टुकड़ी ,
रवि की किरणों को लपेटा , अपने अंदर ही समेटा ॥
धरा बची रवि की तपन से , बयार भी शीतल बही ,
साथ ही शीतलता लेके , कल - कल जलधारा बही ॥
नन्हीं सी बदरी ने देखो , खुद को ही है मिटाया ,
गुम हुई है धीरे - धीरे , बयार में खुद को मिलाया ॥
बयार और शीतल हुई , धरा भी शीतल हुई ,
अस्तित्व बदरी का मिटा , ठंडी जलधारा बही ॥
सुंदर श्यामल सी बदरी , जग को ठंडक दे गयी ,
पूरे दिन में तपन सह कर , आसमां में खो गयी ॥
कुछ व्यक्तित्व होते ऐसे , देते दूजे को आराम ,
खुद को मिटाकर भी तो , नवजीवन दूजे को दे जाते ॥
No comments:
Post a Comment