किवाड़ी
खड़ी हूँ तेरे आँगन में ,
सागर खोल किवाड़ी ,
आने दे तू अंदर मुझको ,
मत कर बंद दुकाडी ॥
तेरे अंदर जल ही जल ,
रुकता नहीं तू किसी भी पल ,
खुली हुई हैं तेरी बाँहें ,
मत कर बंद किवाड़ी ॥
आईना है तू नील गगन का ,
तुझमें अपनी छवि निहारे ,
उसकी छवि तू दिल में बसाए ,
इसीलिए खोली तूने कड़ी ॥
सागर तू भोला है इतना ,
तेरे अंदर जल है जितना ,
प्यार तू देता है दिल भर के ,
रखता खोल किवाड़ी ॥
प्यार दिया है तूने मुझको ,
मैंने भी चाहा है तुझको ,
दोनों का ये प्यार अनोखा ,
खोले संग दुकाडी ॥
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