भोर
भोर हुई लाली छायी जब ,
सूरज का रथ तैयार खड़ा तब ,
झाँका सूरज ने नीचे जब ,
नींद में डूबा था सारा जग ||
घूमा ज्यों ही रथ का पहिया ,
सूरज कुछ - कुछ मुस्काया ,
मुस्कान से फैली किरणों से ,
ये जग भी कुछ - कुछ अलसाया ||
अँगड़ाई ले कर धरती जागी ,
धरावासियों की निद्रा भागी ,
कलरव गूँज उठा खग का ,
कलियों की सुंदरता जागी ||
खुश्बुएँ फैल गयीं बगिया में ,
मौसम भी मानो नाच उठा ,
पवन उड़ी जब ख़ुश्बू लेकर ,
झंकार लिए फिर साज बजा ||
धरावासियों के उठने से ,
शांत हवा में शोर जगा ,
कर्मों की इस दुनिया में ,
कर्मों का ही शोर जगा ||
मुस्कान बढ़ी जब सूरज की ,
तो दिवस बढ़ा आगे - आगे ,
आई दुपहरिया , गर्मी आई ,
शाम हुई तो शीतलता जागे ||
पूरा दिन कामों में बीता ,
हारे थके सभी जन घर आए ,
लेकर शीतलता पवनी की ,
सभी नींद में फिर से खोए ||
भोर हुई लाली छायी जब ,
सूरज का रथ तैयार खड़ा तब ,
झाँका सूरज ने नीचे जब ,
नींद में डूबा था सारा जग ||
घूमा ज्यों ही रथ का पहिया ,
सूरज कुछ - कुछ मुस्काया ,
मुस्कान से फैली किरणों से ,
ये जग भी कुछ - कुछ अलसाया ||
अँगड़ाई ले कर धरती जागी ,
धरावासियों की निद्रा भागी ,
कलरव गूँज उठा खग का ,
कलियों की सुंदरता जागी ||
खुश्बुएँ फैल गयीं बगिया में ,
मौसम भी मानो नाच उठा ,
पवन उड़ी जब ख़ुश्बू लेकर ,
झंकार लिए फिर साज बजा ||
धरावासियों के उठने से ,
शांत हवा में शोर जगा ,
कर्मों की इस दुनिया में ,
कर्मों का ही शोर जगा ||
मुस्कान बढ़ी जब सूरज की ,
तो दिवस बढ़ा आगे - आगे ,
आई दुपहरिया , गर्मी आई ,
शाम हुई तो शीतलता जागे ||
पूरा दिन कामों में बीता ,
हारे थके सभी जन घर आए ,
लेकर शीतलता पवनी की ,
सभी नींद में फिर से खोए ||
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