रत्नाकर
लहरें बढ़ीं हैं सागर की ,
देखो तो मेरी ओर सखि ,
ऊँची - ऊँची ये लहरें भी ,
करती आतीं हैं शोर सखि ॥
ये प्यार दिखाता सागर है ,
लहरों में उसका प्यार छिपा ,
लहरों के बहाने ही सागर ,
दे देता अपना प्यार सखि ॥
सागर तो है रत्नों की खान ,
तभी नाम है रत्नाकर ,
हो गई हूँ मैं धन्य - धन्य ,
पाकर उसका प्यार सखि ॥
लहरें उसकी आयीं पास ,
बन गयीं मेरे गले का हार ,
मिला मुझे है प्यार अपार ,
दिया मैंने भी प्यार सखि ॥
मैं जब जाती सागर के पास ,
दो कदम वो भी बढ़ाता है ,
पास आने की चाह तो मानो ,
दोनों को ही भाती है ना सखि ॥
लहरें बढ़ीं हैं सागर की ,
देखो तो मेरी ओर सखि ,
ऊँची - ऊँची ये लहरें भी ,
करती आतीं हैं शोर सखि ॥
ये प्यार दिखाता सागर है ,
लहरों में उसका प्यार छिपा ,
लहरों के बहाने ही सागर ,
दे देता अपना प्यार सखि ॥
सागर तो है रत्नों की खान ,
तभी नाम है रत्नाकर ,
हो गई हूँ मैं धन्य - धन्य ,
पाकर उसका प्यार सखि ॥
लहरें उसकी आयीं पास ,
बन गयीं मेरे गले का हार ,
मिला मुझे है प्यार अपार ,
दिया मैंने भी प्यार सखि ॥
मैं जब जाती सागर के पास ,
दो कदम वो भी बढ़ाता है ,
पास आने की चाह तो मानो ,
दोनों को ही भाती है ना सखि ॥
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