जाने ना कोई
नींद के झोंके में ,
किसी के फुसफुसाने की आवाज़ आई ,
आँखें खुलीं तो ,
किसी की सूरत झिलमिलाई ,
खिड़की के उस पार से ,
चाँद झाँक रहा था ,
साथ ही साथ ,
वह बोलता भी जा रहा था ||
आवाज़ थी उसकी ,
फुसफुसाहट भरी ,
क्यों रहती हो तुम सखि ?
बंद मकान में ,
बंद दरवाजे के पीछे ,
खिड़कियों के पीछे ||
क्यों नहीं आती हो अब ?
बाहर बगीचे में ,
खुले मैदान में ,
मैं इंतज़ार करता हूँ तुम्हारा ,
खुले आसमान के नीचे ,
दरख्तों के पीछे ,
मुलायम घास पर ,
सागर के किनारे ठंडी रेत पर ||
नहीं ! चाँद नहीं ,
मत करो ऐसी बातें ,
नहीं आ सकती हूँ मैं ,
सागर के किनारे में ,
रेतीले बीच में ,
तुम जानते हो चंदा ,
समय की पुकार है ,
रहना है अंदर ही ,
बंद घर में ही ,
दरवाजे के पीछे ही ,
खुले मैदान ,बाग़ - बगीचे ,
सागर का किनारा ,
सब हैं दिवा स्वप्न जैसे ,
कब खुलेगा बाहर का रस्ता ?
कब खुलेगा बाहर का रस्ता ?
जाने ना कोई , जाने ना कोई ||
नींद के झोंके में ,
किसी के फुसफुसाने की आवाज़ आई ,
आँखें खुलीं तो ,
किसी की सूरत झिलमिलाई ,
खिड़की के उस पार से ,
चाँद झाँक रहा था ,
साथ ही साथ ,
वह बोलता भी जा रहा था ||
आवाज़ थी उसकी ,
फुसफुसाहट भरी ,
क्यों रहती हो तुम सखि ?
बंद मकान में ,
बंद दरवाजे के पीछे ,
खिड़कियों के पीछे ||
क्यों नहीं आती हो अब ?
बाहर बगीचे में ,
खुले मैदान में ,
मैं इंतज़ार करता हूँ तुम्हारा ,
खुले आसमान के नीचे ,
दरख्तों के पीछे ,
मुलायम घास पर ,
सागर के किनारे ठंडी रेत पर ||
नहीं ! चाँद नहीं ,
मत करो ऐसी बातें ,
नहीं आ सकती हूँ मैं ,
सागर के किनारे में ,
रेतीले बीच में ,
तुम जानते हो चंदा ,
समय की पुकार है ,
रहना है अंदर ही ,
बंद घर में ही ,
दरवाजे के पीछे ही ,
खुले मैदान ,बाग़ - बगीचे ,
सागर का किनारा ,
सब हैं दिवा स्वप्न जैसे ,
कब खुलेगा बाहर का रस्ता ?
कब खुलेगा बाहर का रस्ता ?
जाने ना कोई , जाने ना कोई ||
Beautiful poetry- " Jane na koi ", aptly describes todays environment of lockdown .Hats off to you Mithileshji .
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