अँगना
चंदा रे तू बदरा संग क्यूँ ?
छुपन - छुपाई खेलता ,
आँख - मिचौली खेलता ,
कभी तू पूरा छिप जाता है ,
कभी तू उजला हो जाता है ,
बदरा उड़ - उड़ कर पवनी संग ,
तुझे छिपाएँ , तुझे ऊजायें ,
खेल बना लेते गगन के अँगना ||
इतना बड़ा तो अँगना चंदा ,
नहीं किसी को मिलता ,
छोटे - छोटे अँगना में ही ,
खेल सभी का चलता ,
सभी तरसते रह जाते हैं ,
काश हमें भी मिल जाए ,
चंदा - बदरा जैसे गगन का अँगना ||
पर किस्मत है फरक सभी की ,
अलग - अलग सबका अँगना ,
अलग - अलग सूरत सबकी ,
अलग - अलग सीरत सबकी ,
ऐसे ही सबको नहीं बड़ा मिलता अँगना ||
पवन के संग - संग डोलें बदरा ,
तू बदरा संग खेले चंदा ,
तुझे देख बच्चे खुश होते ,
बड़े भी तो मुस्कान पिरोते ,
देख सभी को बोल रे चंदा ,
खिल जाता है तेरा अँगना ||
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