चले गए
जीवन भर राहें तकती रही तुम्हारी मैं ,
और तुम अनजान बन,
निकल कर चले गए ।
रात के अंधेरों से जूझती रही मैं ,
सूर्य के प्रकाश को तुम ,
समेट कर चले गए ।
रंगहीन करके मेरी जिन्दगी ,
अपने ब्रुशों में उसके रंग को ,
समेट कर चले गए ।
प्यार की शहनाइयाँ, जो गूँजती थी मेरे आँगन में ,
सारे सुरों को अपने में ,
समेट कर चले गए ।
गुलशन मेरा महका हुआ था फूलों की खुशबू से ,
तुम मेरे गुलशन को ,
उजाङ कर चले गए ।
कल - कल करती प्यार की सरस धारा ,
निर्दयी तुम उसकी दिशा को ,
मोङ कर चले गए ।
जीवन के अंत में मिले ये दो पल ,
इंतज़ार के बाद मेरे प्राण भी ,
निकल कर चले गए ।