सच' 'आज का
सुनहरी चाँदनी छिटकी यहाँ पे तुम आए ,
हर तरफ रात की रानी महकी यहाँ पे तुम आए ।
जिन्दगी सज गयी एक नई दुल्हन की तरह ,
हाथों में हिना महकी यहाँ पे तुम आए ।
कल बीत गया जानम़ अलसायी शाम की तरह ,
भोर में सूरज की किरन छिटकी यहाँ पे तुम आए ।
ख्वाब जो ख्वाब जो देखे आँखों में मेरी तिरते रहे ,
पूरे करने के लिए माही यहाँ पे तुम आए ।
जीवन का जलतरगं एक मौन में था डूबा ,
उसमें उठी तरंगें जब यहाँ पे तुम आए ।
भोर अंगड़ाई ले के उठ बैठी ,
शाम को सिंदूरी आभा ले के यहाँ पे तुम आए ।
कल जो बीता एक सपना बनकर ,
आज का सच ले के यहाँ पे तुम आए ।
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