'दो रूप जल के'
पार करता सरहदों को ,तोड़ता सीमाओं को,
शक्ति अपने में समेटे ,बहता रहता कल कल ,
जीवन दाता मीठा जल ।
झर झर झरा मेघों से जब , जीवंत हो उट़ठी धरा ,
रोम रोम खिल गया यूं इन्द्रधनुष बन गया ,
बन गयी फिर एक धारा ,झरती हुई बूंदें मिल ,
जीवन दाता मीठा जल ।
फूलों पे सिमटा ओस सा , सौंदर्य का वह बोध था ,
अपने में अनुपम लोच सा , सच्चाइयों का शोध था ,
सूयर् की पहली किरन से , बन गया फिर कोमल जल ,
जीवन दाता मीठा जल ।
सागर बना फिर शांत सा , रत्नों का भंडार सा ,
शक्ति का अम्बार सा , जीवन का एक संसार सा ,
हो गया नमकीन उसमें , बन गया फिर खारा जल ,
जीवन दाता मीठा जल ।
लहरों की सरगम लिए, आगे बढ़ा है जल यही ,
गाम्भीर्य की उपमा लिए , ठहराव लाया जल यही
बज उठी सरगम उसी में , बन गया इकतारा जल ,
जीवन दाता मीठा जल ।
दे कर शक्ति बिजुरी की , अलसायी दुनिया को जगाया ,
उन्नति के शिखर पर , उसने मानव को बिठाया ,
पर यही नीर जब , सुनामी का रूप ले आया ,
हँसते हुए मानव को , ज़ार - ज़ार है रूलाया ,
कहाँ गए नीर के वो , जीवन भरे मीठे पल ,
जीवन हर्ता बना मीठा जल ।
नीर की रंगीन धारा , बन गई संगीन धार ,
ले गई वह साथ अपने , मानव के घर - द्वार ,
पाया नहीं मानव ने , एक बूँद मीठा जल ,
जीवन हर्ता बना मीठा जल ।
लहरें जो सरगम सी थीं , आज वो बम बन गईं ,
जीवन देने वाली धारा ,जीवन ले कर चली गई ,
मानव के नीचे की धरा , हो गई है जलमय ,
ऐसी ही शायद मनु ने , देखी होगी जलप्रलय ,
आज भी आँखों में उनकी , है वही पीङा - जल ,
जीवन हर्ता बना मीठा जल ।
अश्रु भरी आँखों से , ढूंढता है जीवन को ,
प्यार में सराबोर , जिन्दगी के नगीने को ,
एक बूँद ओस की ,कोमल कोमल मीठा जल ,
जीवन हर्ता बना मीठा जल ।
है ज़रूरत पीङितों की , मदद करने वालों की ,
प्यार की सीमा में बँध के , साथ चलने वालों की ,
है ज़रूरत आज भागीरथ की , जो लाए फिर से ,
निर्मल - निर्मल मीठा जल ,
जीवन दाता मीठा जल ।
बढ़ा दो तुम हाथ अपना , जिंदगी की राह में ,
अंजुरी भर प्यार हो तो , बाँट दो संसार में ,
तुम बनो भागीरथ , लाओ फिर से ,
गंगा की धारा निर्मल, प्यार का शीतल जल ,
जीवन दाता मीठा जल |
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