धरा -- बदरा
बदरा रे तू जम के बरस जा ,
धरती तेरी प्यासी रे ।
गरम तपती हुई धरा की ,
करजा दूर उदासी रे ।।
रवि ने गर्मी का जाल बिछाया ,
धरा को उसमें उलझाया ,
रोज - रोज उस तेज तपिश ने ,
धरा को इतना झुलसाया ,
उस तपन और उस झुलसन से ,
धरा हुई है रूआंसी रे ।।
शीतल बयार का एक झोंका ,
लाया बदरा का एक टोका ,
श्यामल -श्यामल बदरा की छाँव ,
आयी जब धरा के गाँव ,
ठंडक पायी जब धरती ने ,
हुई कुछ दूर उदासी रे ।।
बौछारों की माला सी ,
पिरो दी श्यामल बदरा ने ,
धरा को जैसे पहनाई ,
धरा भी जैसे सकुचाई ,
वर्षा ने नीचे आकर के ,
धरा हुई मधुमासी रे ।।
बदरा रे तू जम के बरस जा ,
धरती तेरी प्यासी रे ।
गरम तपती हुई धरा की ,
करजा दूर उदासी रे ।।
रवि ने गर्मी का जाल बिछाया ,
धरा को उसमें उलझाया ,
रोज - रोज उस तेज तपिश ने ,
धरा को इतना झुलसाया ,
उस तपन और उस झुलसन से ,
धरा हुई है रूआंसी रे ।।
शीतल बयार का एक झोंका ,
लाया बदरा का एक टोका ,
श्यामल -श्यामल बदरा की छाँव ,
आयी जब धरा के गाँव ,
ठंडक पायी जब धरती ने ,
हुई कुछ दूर उदासी रे ।।
बौछारों की माला सी ,
पिरो दी श्यामल बदरा ने ,
धरा को जैसे पहनाई ,
धरा भी जैसे सकुचाई ,
वर्षा ने नीचे आकर के ,
धरा हुई मधुमासी रे ।।
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