चंदा ---1 ( प्याला ) भाग - 31
प्याला हाथों में छलक गया ,
दिल मेरा भी बहक गया ,
होठों को छूकर के प्याला ,
साँसों को मेरी महक गया ।
थामा ये जाम जो हाथों में ,
बहकन उतरी है बातों में ,
दो घूँट जो उतरे अन्दर फिर ,
नशा घुल गया रातों में ।।
चमका है चाँद यूँ अम्बर में ,
मानो वो छलकता प्याला हो ,
चाँदनी चहुँ ओर यूँ फ़ैली है ,
ज्यों तू मेरा हमप्याला हो ।।।
रही सरकती चाँदनी रात भर ,
चाँद के संग वो खिलती रही ,
तारों ने नगीने जड़े प्यार से ,
मदिरालय में झिलमिल करती रही ।।।।
जीवन सपनों सा महक गया ,
ज्यों प्याला कोई बहक गया ,
मदिरा पाकर पीने वाला ,
मयखाने सा महक गया ।।।।।
हमप्याले हुए चाँदनी के ग़ुलाम ,
बहकते रहे कुछ दीवाने हुए ,
छू न सके चमकीली चाँदनी को ,
हुई भोर तो उषा की लालिमा में खोए ।।।।।।
प्याला हाथों में छलक गया ,
दिल मेरा भी बहक गया ,
होठों को छूकर के प्याला ,
साँसों को मेरी महक गया ।
थामा ये जाम जो हाथों में ,
बहकन उतरी है बातों में ,
दो घूँट जो उतरे अन्दर फिर ,
नशा घुल गया रातों में ।।
चमका है चाँद यूँ अम्बर में ,
मानो वो छलकता प्याला हो ,
चाँदनी चहुँ ओर यूँ फ़ैली है ,
ज्यों तू मेरा हमप्याला हो ।।।
रही सरकती चाँदनी रात भर ,
चाँद के संग वो खिलती रही ,
तारों ने नगीने जड़े प्यार से ,
मदिरालय में झिलमिल करती रही ।।।।
जीवन सपनों सा महक गया ,
ज्यों प्याला कोई बहक गया ,
मदिरा पाकर पीने वाला ,
मयखाने सा महक गया ।।।।।
हमप्याले हुए चाँदनी के ग़ुलाम ,
बहकते रहे कुछ दीवाने हुए ,
छू न सके चमकीली चाँदनी को ,
हुई भोर तो उषा की लालिमा में खोए ।।।।।।
No comments:
Post a Comment