मस्त सूरज
छाया धुंधलका है यहाँ ,
धुंध सी चहुँ ओर है ,
रोशनी की एक किरन का ,
ओर है ना छोर है ।
जिस तरफ दौड़े नज़र ,
देता दिखाई ना कुछ यहाँ ,
धुंध में लिपटा हुआ है ,
देखो तो सारा जहाँ ।
दूर तक ना दिख रहा ,
सब कुछ छिपा है धुंध में ,
परतें अनोखी हैं सभी ,
खुलती नहीं हैं धुंध में ।
साँस जो भी आती है ,
साँसों में धुंध समा रही ,
मन के अन्दर तक मानो ,
भीगी खुशबू आ रही ।
धुंधले से इस मौसम में ,
सूरज भी मानो पस्त है ,
छिप कर रजाई में वह ,
चाय पीने में मस्त है ।
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