गगन की बिंदी
क्यूँ चंदा तू घटता जाता ?
दिन - दिन क्यूँ तू घटता जाता ?
अन्धकार में खोता जाता ,
अपने प्रिय को क्यूँ तड़पाता ??
प्यार तुझे सब करते फिर भी ,
तू क्यूँ उनका प्यार ना जाने ?
इतना प्यार पाने पर तू ही ,
प्यार को सबके ना पहचाने ||
गगन से जब तू गायब होता ,
प्रिय हो जाते हैं बेचैन ,
दिल से तुझे बुलाते रहते ,
ढूँढते रहते उनके नैन ||
रंग नहीं हैं तुझमें चंदा ,
पर तू है चाँदी जैसा ,
गहरे काले आसमान में ,
चम - चम , चम - चम , चमकीला ||
जब चमके तू बन भाग्य लकीर ,
खुश जाते हैं तेरे प्रिय - जन ,
बढ़ता रूप देख कर तेरा ,
चमक जाते हैं उनके नयन ||
बढ़ते - बढ़ते तेरा रूप ,
गोल सजीला बन जाए ,
होते - होते तू ही तो ,
गगन की बिंदी बन जाए ||
क्यूँ चंदा तू घटता जाता ?
दिन - दिन क्यूँ तू घटता जाता ?
अन्धकार में खोता जाता ,
अपने प्रिय को क्यूँ तड़पाता ??
प्यार तुझे सब करते फिर भी ,
तू क्यूँ उनका प्यार ना जाने ?
इतना प्यार पाने पर तू ही ,
प्यार को सबके ना पहचाने ||
गगन से जब तू गायब होता ,
प्रिय हो जाते हैं बेचैन ,
दिल से तुझे बुलाते रहते ,
ढूँढते रहते उनके नैन ||
रंग नहीं हैं तुझमें चंदा ,
पर तू है चाँदी जैसा ,
गहरे काले आसमान में ,
चम - चम , चम - चम , चमकीला ||
जब चमके तू बन भाग्य लकीर ,
खुश जाते हैं तेरे प्रिय - जन ,
बढ़ता रूप देख कर तेरा ,
चमक जाते हैं उनके नयन ||
बढ़ते - बढ़ते तेरा रूप ,
गोल सजीला बन जाए ,
होते - होते तू ही तो ,
गगन की बिंदी बन जाए ||
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