रवि - सागर
सागर तेरे द्वार पे मेरी किरणें ,
देतीं दस्तक लगातार ,
पर जवाब दे मुझको सागर ,
कब खोलेगा अपना द्वार ??
फैल - फैल कर किरणें मेरी ,
उजियाला कर देतीं ,
द्वार तेरा तो हुआ है रोशन ,
अंदर तो फैला अंधकार ||
द्वार तेरा तो किरणों से ,
झिलमिल - झिलमिल हो गया ,
पर अंदर तो तेरे सागर ,
फैल रहा घन - अंधकार ||
खोल जरा अपने पट सागर ,
किरणों को आने दे अंदर ,
उजियाले को बिखर - बिखर कर ,
फैलाने दे उजियाला अंदर ||
अंदर बसते जीवों को भी ,
मेरी किरणों का साथ मिले ,
उनको भी सब रंगों का ,
मिल जाए अंदर संग साथ ||
अनगिन जीव बसे अंदर ,
ना जाने रंग - रूप दूजे का ,
पहचान बने सबकी सागर ,
उजियाला गर फैले अंदर ||
काश तू जान पाता ,सागर ,
घर में उजियाला क्या होता ?
खुशियों का संसार अनोखा ,
घर में ही बस जाता होता ||
नैना काम करें हैं सागर ,
उजियाला जब होता है ,
दूजे की मुस्कानों से तब ,
अपना दिल मुस्काता है ||
खोल द्वार तू अपना सागर ,
रश्मियाँ करती हैं इंतजार ,
मैं भी हूँ व्याकुल जन्मों से ,
देखने को तेरा संसार ||
मैं जग को उजियारा देता ,
पर मित्र के घर में अंधकार ,
काश मैं कर पाता कुछ जतन ,
कर पाता अंधकार को उजियाल ||
नहीं द्वार जो खोले अपना ,
खिड़की जरा खोल दे तू ,
झाँक जरा लूँ मैं भी सागर ,
देख लूँ मैं तेरा घर - बार ||
सागर तेरे द्वार पे मेरी किरणें ,
देतीं दस्तक लगातार ,
पर जवाब दे मुझको सागर ,
कब खोलेगा अपना द्वार ??
फैल - फैल कर किरणें मेरी ,
उजियाला कर देतीं ,
द्वार तेरा तो हुआ है रोशन ,
अंदर तो फैला अंधकार ||
द्वार तेरा तो किरणों से ,
झिलमिल - झिलमिल हो गया ,
पर अंदर तो तेरे सागर ,
फैल रहा घन - अंधकार ||
खोल जरा अपने पट सागर ,
किरणों को आने दे अंदर ,
उजियाले को बिखर - बिखर कर ,
फैलाने दे उजियाला अंदर ||
अंदर बसते जीवों को भी ,
मेरी किरणों का साथ मिले ,
उनको भी सब रंगों का ,
मिल जाए अंदर संग साथ ||
अनगिन जीव बसे अंदर ,
ना जाने रंग - रूप दूजे का ,
पहचान बने सबकी सागर ,
उजियाला गर फैले अंदर ||
काश तू जान पाता ,सागर ,
घर में उजियाला क्या होता ?
खुशियों का संसार अनोखा ,
घर में ही बस जाता होता ||
नैना काम करें हैं सागर ,
उजियाला जब होता है ,
दूजे की मुस्कानों से तब ,
अपना दिल मुस्काता है ||
खोल द्वार तू अपना सागर ,
रश्मियाँ करती हैं इंतजार ,
मैं भी हूँ व्याकुल जन्मों से ,
देखने को तेरा संसार ||
मैं जग को उजियारा देता ,
पर मित्र के घर में अंधकार ,
काश मैं कर पाता कुछ जतन ,
कर पाता अंधकार को उजियाल ||
नहीं द्वार जो खोले अपना ,
खिड़की जरा खोल दे तू ,
झाँक जरा लूँ मैं भी सागर ,
देख लूँ मैं तेरा घर - बार ||
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