सावन में फागुन
सावन की रिमझिम बरखा में ,
याद आया मुझे पिछला फागुन ,
जीने की नहीं तमन्ना है ,
फागुन मुझको भी लेता जा |
हर साल मनाती थी तुझ को ,
हर बार सजी थी रंगों से ,
सखियों का रंग वो कच्चा था ,
तू साथ में उस को लेता जा |
थी आस पिया के मिलने पर ,
तुझ को फिर और मनाऊँगी ,
पर आज खड़ी हूँ राहों में ,
जीवन तू मेरा लेता जा |
हर बार अगर तू आया था ,
और मैंने तुझे मनाया था ,
फिर अब क्यों तूने आ कर के ,
कच्चे रंग लगा कर के ,
तूने मुझे तड़पाया था |
काश ना अब की तू आता ,
मैं खुद आ जाती तेरे पास ,
ऐसा जो गर हो जाता तो ,
रहती ना अधूरी मेरी प्यास |
मेरी खुशियों को लेकर के ,
मुझको छोड़े क्यूँ जाता है ,
जब खुशियाँ छीन चला है तू ,
तो जीवन को भी लेता जा |