जीवन गृहणी का
एक कहावत सुनी बहुत थी ,
" बिन घरनी घर भूत का डेरा ",
सच है ये कहावत ,जरा देखो घर छड़ों का बंधु |
गृहणी सँवारे घर को ,बनाए घर एक मकान को ,
घर में रहने वाले हर प्राणी की ,इच्छा समझे ,पूरी करे ,
क्या अन्य कोई कर सके बंधु ?
एक सजा ,सँवरा घर एक खुश्बुओं से महकता घर ,
एक मुस्कानों से भरा घर ,किलकारियों से भरा घर ,
क्या अन्य कोई कर सके बंधु ?
दिन के चौबीस घंटे ,महीने के तीसों दिन ,
साल के तीन सौ पैंसठ दिन ,अनवरत कार्य करे ,
क्या अन्य कोई कर सके बंधु ?
मगर उसी गृहणी को ,इसका क्या फल मिले ?
कोई ना तनख्वाह ,कोई ना बोनस ,कोई ना छुट्टी ,
क्या अन्य कोई कर सके बंधु ?
जरा समझो बंधु ,प्यार दो ,दुलार दो ,
मान दो ,सम्मान दो ,उसके चेहरे पे खिलती मुस्कान दो ,
आप इतना तो करो बंधु ,
आप इतना तो करो बंधु |
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