Wednesday, October 5, 2022

RAAT BHAR ( CHANDRAMAA )

 

                रात भर 


चंद्रमा झाँका गगन में ,मुस्का के झाँका गगन में ,

सखि ! तुम कहाँ छिपी हो ? 

खिड़की में तो आओ जरा | 


निकली मैं खिड़की के पास ,

मुस्कुरा उठी मैं देख के चंद्रमा ,

अरे! सखा तुम आ गए हो ,

हँस पड़ा मेरा सखा चंद्रमा | 


कैसी हो सखि तुम ? बहुत दिन हुए मिले तुमसे ,

हाँ ! सखा आए नहीं हो तुम ,

इसी से हम मिल ना पाए तुमसे | 


मेरा तो सखि हर दिन ऐसा ही ,

हर दिन नहीं आ पाता हूँ ,

तुम भी तो नहीं खिड़की पे आतीं ,

क्योंकि मैं तो रोज़ नहीं आता हूँ | 


छोड़ो ये बातें सखा तुम ,

अंदर आओ इसी खिड़की से तुम ,

दोनों मिल बैठेंगे रात भर ,

बातें खूब करेंगे रात भर | 


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