सिमट गया
रवि ने फैलाया है जाल , जाल में सिमट गया संसार ,
हरे - भरे पेड़ों के फुनगे , और तिनके हैं समेटे ।
हरे - भरे पेड़ों के फुनगे , और तिनके हैं समेटे ।
चमक रश्मियों से चमका जग , फूलों से है सजी बहार ,
बिखर रही हैं सभी रश्मियाँ , जैसे हों सोने के तार ।
बिखर रही हैं सभी रश्मियाँ , जैसे हों सोने के तार ।
जीवन उतर - उतर है आया , रवि के रथ से धरती पर ,
अनुगृहित तो हुई धरा है , खिला प्यार जो धरती पर ।
अनुगृहित तो हुई धरा है , खिला प्यार जो धरती पर ।
धरा हो गई हरी - भरी , नदियाँ कल - कल गाएँ ,
जीव भरे जीवन के रस से , जीवन - संगीत सुनाएँ ।
जीव भरे जीवन के रस से , जीवन - संगीत सुनाएँ ।
सुन संगीत मधुर - सा , बीना स्वयं हुई झंकृत ,
स्वर उपजे जो बीना से , सरसा जीवन तत्क्षण ।
स्वर उपजे जो बीना से , सरसा जीवन तत्क्षण ।
राग फ़ैल गए दिल में , उमगा हिलसा तन और मन ,
इन सब से फ़ैली हरियाली , महक उठा जीवन उपवन ।
इस महके से उपवन में , कलियाँ महकीं खुशियों की ,
ओस की बूँदें चमक उठीं हैं , मोती की मानो लड़ियों सी ।
ओस की बूँदें चमक उठीं हैं , मोती की मानो लड़ियों सी ।
No comments:
Post a Comment