आभा
चमकती रश्मियों का जाल ,
बुनकर भेजा है रवि ने ,
समेटा मैंने आँचल में ,
जो तोहफा भेजा है रवि ने ।
समेटा मैंने आँचल में ,
जो तोहफा भेजा है रवि ने ।
चमक आँखों में उतरी है ,
जो भेजी है दिनकर ने ,
वही चमकीली , सिंदूरी - सी आभा ,
उतर आयी है जीवन में ।
जो भेजी है दिनकर ने ,
वही चमकीली , सिंदूरी - सी आभा ,
उतर आयी है जीवन में ।
चमकती लहराती -सी नदिया ,
समेटे रश्मियाँ रवि की ,
चली जातीं है नीलाम्बर के नीचे ,
बलखाती - सी ,
इसी चमचम नदिया की चमक ,
कहती हलो रवि जी ,
इसी मुस्कान पर फ़िदा हो ,
चमक बढ़ती जाती रवि की ।
समेटे रश्मियाँ रवि की ,
चली जातीं है नीलाम्बर के नीचे ,
बलखाती - सी ,
इसी चमचम नदिया की चमक ,
कहती हलो रवि जी ,
इसी मुस्कान पर फ़िदा हो ,
चमक बढ़ती जाती रवि की ।
बढ़ती चमक रवि की ,
जो देखी नीचे नदिया ने ,
बढ़ी मुस्कान नदिया की भी ,
मानो दोस्त दो मिले ,
चमक नदिया की जब पायी ,
रश्मियाँ नाच ही उठीं ,
लगा तब बगिया में ,
खुशी के फूल हैं खिले ।
जो देखी नीचे नदिया ने ,
बढ़ी मुस्कान नदिया की भी ,
मानो दोस्त दो मिले ,
चमक नदिया की जब पायी ,
रश्मियाँ नाच ही उठीं ,
लगा तब बगिया में ,
खुशी के फूल हैं खिले ।
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