दो महकने
समय चक्र जो चल रहा , चलने दो ,
जीवन रथ आगे बढ़ रहा , बढ़ने दो ।
लेखनी विधाता की , भाग्य को लिख रही ,
किसी का उज्ज्वल , किसी का महका रही ,
तुम अपने कर्मों से भाग्य को , बदलने दो ।
प्रकृति चाह रही ,मानव की दोस्ती को ,
हर रंग दे उसको , ऐसा ही सोचती वो ,
तुम हाथ बढ़ाकर प्रकृति को , संवरने दो ।
नदियाँ ले आयीं हैं , आँचल में अपने नीर ,
मानव के द्वारे पे , नदियों का है तीर ,
उनका ये आँचल मानव हर तरफ , झलकने दो ।
बर्फीली घाटियों में , रंग ज्यूँ बिखरते हैं ,
फूलों के रूप में , ज्यूँ बाल - मन मुसकते हैं ,
घाटियों और बगियों में फूलों को , महकने दो ।
बदरा तो छा गए , नीले आकाश में ,
चमकती दामिनी है , बदरा के साथ में ,
श्यामल बदरा बीच दामिनी को , चमकने दो ।
सावन की रिमझिम , बूँदों को बरसा गई ,
गरमी से तप्त धरा को , आज तो सरसा गई ,
अब के बरस तो बदरा को रिमझिम , बरसने दो ।
समय चक्र जो चल रहा , चलने दो ,
जीवन रथ आगे बढ़ रहा , बढ़ने दो ।
लेखनी विधाता की , भाग्य को लिख रही ,
किसी का उज्ज्वल , किसी का महका रही ,
तुम अपने कर्मों से भाग्य को , बदलने दो ।
प्रकृति चाह रही ,मानव की दोस्ती को ,
हर रंग दे उसको , ऐसा ही सोचती वो ,
तुम हाथ बढ़ाकर प्रकृति को , संवरने दो ।
नदियाँ ले आयीं हैं , आँचल में अपने नीर ,
मानव के द्वारे पे , नदियों का है तीर ,
उनका ये आँचल मानव हर तरफ , झलकने दो ।
बर्फीली घाटियों में , रंग ज्यूँ बिखरते हैं ,
फूलों के रूप में , ज्यूँ बाल - मन मुसकते हैं ,
घाटियों और बगियों में फूलों को , महकने दो ।
बदरा तो छा गए , नीले आकाश में ,
चमकती दामिनी है , बदरा के साथ में ,
श्यामल बदरा बीच दामिनी को , चमकने दो ।
सावन की रिमझिम , बूँदों को बरसा गई ,
गरमी से तप्त धरा को , आज तो सरसा गई ,
अब के बरस तो बदरा को रिमझिम , बरसने दो ।
No comments:
Post a Comment